भीड़
बड़े विद्वानों ने कहा है, भीड़ का कोई रूप नहीं होता | भीड़ मेले में भी होती
है, धार्मिक समागमों में भी, कभी दंगों का रूप धारण कर लेती है, तो कभी इस तरह
खतरनाक हो जाती है की दंगे भी करवाती है | आप और मुझ जैसे इस भीड़ का शिकार बनते
हैं| खैर इस भीड़ के बारे में आप ने सुना और पढ़ा होगा, कहीं न कहीं | जिस भीड़ की
मैं बात करने जा रही हूँ वो भीड़ इस ऊपर वाली भीड़ से भी ज्यादा खतरनाक है | ये वो
भीड़ है जो हर साल अपने से भी ज्यादा ख़तरनाक भीड़ पैदा करती है, यह शिक्षकों की भीड़
है | अगर आप शिक्षक हैं तो आगे ज़रूर पढ़िए | और मैं उन शिक्षकों से अभी माफ़ी मांगना
चाहती हूँ जो इस भीड़ से तंग हैं | आप अपने आप को निश्चित तौर पर इस भीड़ के दूसरी
तरफ पाएंगे |
हाँ, तो ये वो भीड़ है जो किसी तरीके से शैक्षणिक संस्थानों में भर्ती तो हो गई
है, और भरती केसे हुई है यह न ही बोलूं तो ठीक रहेगा, बस इतना कहूँगी कि यह भीड़ उसी
भीड़ का एक हिस्सा है जिसका उल्लेख प्रारंभ में किया गया है | यह भीड़ जो वातावरण
बनाती है वो ग्लोबल वार्मिंग से भी अधिक खतरनाक है | पढाई तो छोड़ो, यह भीड़ तो कक्षा
में नैतिक कहानी भी नहीं सुना सकती| यह सिखाती है केसे फर्जी मेडिकल से अपनी हाजरी
ठीक कर सकते हैं, कैसे इसकी चापलूसी करने से सब कुशल रहेगा, कभी कभी यह भी होता है
–“हाँ यार नेलपालिश बढ़िया लगाई हो, कल एक मेरे लिए लेती आना” | यह भीड़ अप्रत्यक्ष
रूप से यह भी बता देती है कि ज्यादा प्रश्न पूछने वालों को कक्षा से बाहर का
रास्ता दिखा दिया जायेगा | पेपर में तो सब पास हैं, तो पप्पू ज़रूर एक शिक्षक से
पढ़ा होगा जो हर बार फेल हो जाता है |
जब यह भीड़ इकट्ठी होती है तो इनके विचार
विमर्श के बारे में आप सोच भी नहीं सकते | खाने से लेकर कपड़े, एक दुसरे से भद्दा
मज़ाक, कई बार अश्लील बातें, पीठ पीछे एक दुसरे की चुगलियाँ, चरित्र चीर हरण तो
होता ही है, परन्तु सामने एक दुसरे के गले मिलना तो इनकी ख़ास विशेषता है | इनके
चरित्र की एक और अजीब विशेषता है कि जिस काम के लिए इनको भर्ती किया गया है, यदि
भूले भटके इन्हें वो काम करना पड़ जाये तो ये सिस्टम की अपने फूहड़ ढंग में कड़ी
आलोचना कर डालते हैं | इस भीड़ का मानना है की यह कुछ भी कर सकती है, जैसे दंगे में
किसी को भी मार देते हैं, फूँक देते हैं, क्यूंकि यह बहुसंख्यक होते हैं | दोगलापन,
इनकी सोच है | अब सोच लो, इस भीड़ द्वारा पैदा की गई भीड़ कैसी होगी |
जो पीढ़ी इनके प्रभाव में आती है वो इनसे भी अधिक ख़तरनाक हो जाती है | दुखदायी
सच यह है कि इनकी तादात बढती जा रही है | मुझे लगता है कि जब तक इस बात का अंदेशा
बुद्दिजीवियों को होगा तब तक यह समस्या भी गरीबी और बेरोज़गारी की तरह एक अभेद्य
कुचक्र का रूप ले चुकी होगी | अब ढूँढो किनारा |
हाँ, मैं भी शिक्षक हूँ | लिखते समय यह अंदाज़ा हुआ कि कभी अपने कार्यकाल में
मैं भी इस भीड़ का हिस्सा हो चली थी | पर एहसास होते ही अपने आप को इस भीड़ से अलग
करने का प्रयास शुरू किया | जानती हूँ कि आज छात्र मुझे बहुत अधिक पसंद नहीं
करेंगे क्यूंकि मैं उन्हें नैतिक कहानी सुना सकती हूँ और मैं किसी डाक्टर को भी
नहीं जानती | गल्ती तो हर कोई करता है, मैंने भी की, उसके लिए मैं क्षमा मांगूंगी,
पर जो गल्ती को मानकर उसमें सुधार करे वही इन्सान कहलाता है |
मैं आपकी शिक्षिका, भीड़ होने से इंकार करती हूँ |
इस लेख ने मुझे कुछ पुराने दिनो की याद करा दी । मैं कुछ भी कहने के लिए छोटा हूं, लेकिन मुझे भरोसा है की हमारी पीढ़ी की समझदारी और आधुनिकता काम आएगी । आप जैसे मार्गदर्शको का प्रभाव भी इस कार्य की पूर्ति में बहुमूल्य होगा । हार्बिन्जर ऑफ चेंज ।
ReplyDeleteआप जैसे बच्चे ही हमारा होसला और उम्मीद है ।
Deleteआप जैसे बच्चे ही हमारा होसला और उम्मीद है ।
Deleteमुझे बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं हैं क्योंकि अभी के समय में छात्रों को ना तो अच्छे शिक्षकों का मोल पता है ना ही उन्होंने कभी इस पर ध्यान दिया है कि शिक्षक अच्छे होने चाहिए। अगर छात्र ठान लें तो क्या मजाल है कि गुटखा खाने वाले, इश्क लड़ाने वाले और लिप्स्टिक बतियाने वाले शिक्षक दो दिन टिक पाएँ!
ReplyDeleteक्या आज के छात्र में हिम्मत है कि वो कह दें कि सर गुटखा मत खाइए, और पढ़ाइए? क्या आज की छात्रा अपने टीचर को ये कह सकती है कि मैम अपना मोबाइल और व्हाट्सएप्प मत दिखाइए, पढ़ाइए हमें?
ये निकम्मे टीचरों की भीड़ का सफ़ाया छात्र ही कर सकते हैं क्योंकि वो पढ़ने के लिए बहुत पैसा देते हैं, उनको कॉलेज नहीं निकाल सकती क्योंकि एक को निकाल कर अस्सी हजार का नुक़सान कौन सहेगा। शिक्षकों का क्या है, अगर आपने आवाज़ उठाइ तो आपको ही बाहर कर देंगे क्योकि इनकी मठाधीशी सालों से चल रही है। चुग़ली करना, अपीज़मेंट करना, बिना पढ़े कॉपी जाँचना, सूट का डिज़ाईन डिसकस करना इनकी आदत है।
अब छात्रों को इसी में मज़ा आता है, तो फिर किसी को क्या फ़र्क़ पड़ता है। ऐसे शिक्षक भी आते रहेंगे, और उनसे बीसगुणा ज्यादा घटिया छात्रों की भीड़ बढ़ती रहेगी।
अच्छे छात्रों को हिम्मत करनी होगी।
DeleteAwesome :) umeed hai ki log isse prabhavit honge..
ReplyDeleteएक शिक्षिका का ईमानदार क़बूलनामा. बधाई इसलिए नहीं कि आपने लिखा,बल्कि इसलिए की पंजाबी मातृभाषा और अंग्रेज़ी पेट की भाषा होने के बाद भी हिन्दी में लिखने की अबोध कोशिश की. भाव में प्रवाह है पर शायद वो नहीं निकल पाया है जिसके लिए ब्लॉग लिखा गया,शायद भाषा वजह होगी.एक बढ़िया कोशिश.
ReplyDeleteआशा है ऐसी भीड़ के मन में स्वयं में सकारात्मक बदलाव लाने की इच्छा जागृत हो।
ReplyDeleteआशा है ऐसी भीड़ के मन में स्वयं में सकारात्मक बदलाव लाने की इच्छा जागृत हो।
ReplyDeleteउम्मीद है ।
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